बाबू गुलाबराय (१७ जनवरी १८८८ – १३ अप्रैल १९६३) हिन्दी के आलोचक तथा निबन्धकार थे।आधुनिक हिंदी गद्य के उन्नयकों
में गुलाब राय का प्रमुख स्थान है| गुलाब राय जी एक मौलिक निबंधकार,उत्कृष्ट समालोचक एवं सफल संपादक के रूप में हिंदी की सेवा के लिए सदैव प्रशंसा के पात्र है ।मेरी असफलताएँ,ठलुआ क्लब ,नवरस आदि इनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
लोग ना जाने क्या-क्या बातें करते हैं आलसी लोगों के लिए… किंतु गुलाब राय जी ने आलस्य को जीवन का एक अहम हिस्सा बताया है और ऐसे- ऐसे तर्क दिए हैं जो वाकई इस धारणा को गलत साबित कर देंगे जो आलस्य को बुरा मानते हैं ।जानना नहीं चाहेंगे वह कैसे? आलस्य पर व्यंग कसते हुए गुलाब राय जी ने आलस्य को अपनाने और उसकी उपयोगिता पर खूबसूरत ढंग से अपनी बात रखी है उनके इस वक्तव्य को सुनते हैं अमित तिवारी जी की आवाज़ में..
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Parvati Yadav