महोब्बत में जुदाई ,जिसमें आशिक और उसकी माशूका दोनों का दिन का चैन और रातों की नींदे गायब हो जाती है।दर्द ही उनकी किस्मत बन जाती है।हालत-ए-हाल के सबब ग़ज़ल में जान सकेगें .आमिर की आवाज़ में..
शायर दुनिया से,अपनी जिंदगी से बेज़ार है,उसका दिल कहीं नहीं लग रहा है| वह बे-दिली से पूछता है क्या हमारे दिन यूं ही गुजर जाएंगे ?पूरी ग़ज़ल को सुनते हैं और समझते हैं आमिर के द्वारा ग़ज़ल में…
शायर अपनी महबूबा से रिश्ते खत्म करते हुए,एक हमदर्दी का रिश्ता कायम रखना चाहता है| यह मंज़र दुखदायीहै लेकिन शायर ने अपनी दिलकश अंदाज में अपने जज्बातों को हसीन ढंग से अपनी शायरी में रचा-बसा दिया है| दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल जॉन और फ़ारेहा, सुनते हैं आमिर की आवाज में..
शायर की यह ग़ज़ल अपने अंदर काफी कुछ समेटे हुए हैं | शायर कहता है वह अपनी जिंदगी के सफर में आगे भी जा चुका है और पीछे भी रह गया है इसीलिए वह जीते -जी यादगार बन गया है |वह मौजूद होते हुए भी गुजरे हुए वक्त की एक निशानी है |शायर अपनी निजी जिंदगी को एक राज बना कर रखना चाहता है लेकिन उसका सारा हाल सारा जग जानता है, क्योंकि शायर यह हुनर सीख ही नहीं पाया |पूरी ग़ज़ल जॉन यारों का यार को खूबसूरत अंदाज में समझते हुए सुनते हैं ,आमिर की आवाज में….
संवेदनशील जॉन एलिया का जन्म 14 दिसंबर 1931 में अमरोहा में हुआ |उनकी शायरी का मुख्य अंदाज ऐसा है कि मानो वे किसी से गुफ़्तगू कर रहे हों |जॉन एलिया की शायरी में अलमस्त जीवन शैली और हालात से समझौता ना करना ,साफ झलकता है | उनके जीवन के कुछ रोचक बातें जानेंगे आमिर के शायराना अंदाज में….
गुलशन में बहार तभी आएगी जब महबूब आएगा ,यह खामोश गमगीन माहौल तभी खुशनुमा और रंगीन होगा जब महबूब का जिक्र होगा | शायर ने अपनी महबूबा की दिलकशी को अपने लफ्जों किस प्रकारसे सजाया है ?आमिर की खूबसूरत आवाज नहीं सुनते हैं अहमद फ़ैज़ की नज़्म “गुलों में रंग भरे”..
शायर अपनी महबूबा से रिश्ते खत्म करते हुए,एक हमदर्दी का रिश्ता कायम रखना चाहता है| यह मंज़र दुखदायीहै लेकिन शायर ने अपनी दिलकश अंदाज में अपने जज्बातों को हसीन ढंग से अपनी शायरी में रचा-बसा दिया है| दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल जॉन और फ़ारेहा, सुनते हैं आमिर की आवाज में..
शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म में शायर अपने महबूब की खूबसूरती ,उसकी वफ़ा को मानता तो है लेकिन वह अपने आसपास की परेशानियों को नजरअंदाज नहीं कर पाता |आइए सुनते हैं आमिर की आवाज में इस खूबसूरत नज़्म मुझसे पहली सी मोहब्बत…
शायर बता रहा है किसी तरह उसकी शाम बस गुजर ही गई |तकलीफ हुई, परेशानी भी हुई लेकिन जुदाई का गम हमसे पूछ कर फिर क्यों याद दिला रहे हो | शायर ने अपने महबूब को याद कर लिया है जिससे उसकी तकलीफ खत्म तो नहीं हुई बस कुछ हद तक कम जरूर हुई है | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा लिखी गई नज़्म “शाम ए फिराक “,को सुनते हैं आमिर की आवाज में…
शायर दुनिया से,अपनी जिंदगी से बेज़ार है,उसका दिल कहीं नहीं लग रहा है| वह बे-दिली से पूछता है क्या हमारे दिन यूं ही गुजर जाएंगे ?पूरी ग़ज़ल को सुनते हैं और समझते हैं आमिर के द्वारा ग़ज़ल में…
शायर दुनिया से,अपनी जिंदगी से बेज़ार है,उसका दिल कहीं नहीं लग रहा है| वह बे-दिली से पूछता है क्या हमारे दिन यूं ही गुजर जाएंगे ?पूरी ग़ज़ल को सुनते हैं और समझते हैं आमिर के द्वारा ग़ज़ल में…
शायर अपनी महबूबा से रिश्ते खत्म करते हुए,एक हमदर्दी का रिश्ता कायम रखना चाहता है| यह मंज़र दुखदायीहै लेकिन शायर ने अपनी दिलकश अंदाज में अपने जज्बातों को हसीन ढंग से अपनी शायरी में रचा-बसा दिया है| दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल जॉन और फ़ारेहा, सुनते हैं आमिर की आवाज में..
संवेदनशील जॉन एलिया का जन्म 14 दिसंबर 1931 में अमरोहा में हुआ |उनकी शायरी का मुख्य अंदाज ऐसा है कि मानो वे किसी से गुफ़्तगू कर रहे हों |जॉन एलिया की शायरी में अलमस्त जीवन शैली और हालात से समझौता ना करना ,साफ झलकता है | उनके जीवन के कुछ रोचक बातें जानेंगे आमिर के शायराना अंदाज में….
शायर की यह ग़ज़ल अपने अंदर काफी कुछ समेटे हुए हैं | शायर कहता है वह अपनी जिंदगी के सफर में आगे भी जा चुका है और पीछे भी रह गया है इसीलिए वह जीते -जी यादगार बन गया है |वह मौजूद होते हुए भी गुजरे हुए वक्त की एक निशानी है |शायर अपनी निजी जिंदगी को एक राज बना कर रखना चाहता है लेकिन उसका सारा हाल सारा जग जानता है, क्योंकि शायर यह हुनर सीख ही नहीं पाया |पूरी ग़ज़ल जॉन यारों का यार को खूबसूरत अंदाज में समझते हुए सुनते हैं ,आमिर की आवाज में….
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